!! अनुभव का कमाल !!
बात उन दिनों की है जब देश में अंग्रेजों का शासन था | एक दिन बम्बई मेल यात्री से खचा-खच भरी हुई तेज गति से दौड़ी जा रही थी | यात्रियों में अधिकतर अंग्रेज थे , पर एक डिब्बे में सांवले रंग का एक भारतीय यात्री धोती-कुरता पहने गुमसुम बैठा था |
सभी अंग्रेज यात्री उसे मुर्ख समझ कर उसपर व्यंग कर रहे थे | कुछ देर बाद अचानक उस व्यक्ति ने उठकर जंजीर खींच दी | गाड़ी की रफ़्तार धीमी पर गई | उस व्यक्ति को अन्य यात्री भला-बुरा कहने लगे | जब रेल रुकी तो गार्ड अन्दर आया और उसने पूछा - "जंजीर किसने और क्यों खींची ?"
इस पर वह व्यक्ति बोला जंजीर मैंने खीचीं है | मुझे ऐसा अनुमान हुआ कि यहाँ से एक बिलांग दूर रेल की पटरी उखरी हुई है | गार्ड हैरानी से उस व्यक्ति की ओर देखते हुए बोला - "आपको कैसे पता लगा ?"
वह व्यक्ति बोला - "दरअसल गाड़ी की गति में अंतर आ गया था | इससे प्रतिध्वनि होने वाली आवाज से मुझे खतरे का आभास हो गया |"
गार्ड उस व्यक्ति के साथ कुछ यात्रियों को लेकर एक फलांग से आगे पहुँचा और यह देखकर गार्ड के साथ अन्य लोग भी दंग रह गए कि वास्तव में एक जगह से पटरी के जोड़ खुले हुए थे | सभी लोग उस व्यक्ति की सराहना करने लगे | गार्ड ने उनसे पूछा - "आप कौन है ? आपका नाम क्या है ?"
उस व्यक्ति ने सहज भाव से बताया - "मैं एक इंजिनियर हूँ | मेरा नाम डॉ विश्वेश्वरैया है |" नाम सुनते ही सब सन्न रह गए | आज भी विश्वेश्वरैया का नाम देश के महान इंजीनियर में गर्व से किया जाता है |
Moral :- दोस्तो , ये सब उनहोंने सिर्फ अपने अनुभव के आधार पर ही किया | किसी ने सच ही कहा है - "अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते है , वो पुस्तकों में नहीं मिलते |"
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