!! काँटों में राह बनाते है !!
सच है विपत्ति जब आती है
कायर को ही दहलाती है ,
सुरमा नहीं विचलित होते
क्षण एक नहीं धीरज खोते ,
विघ्नों को गले लगाते है
काँटों में राह बनाते है |
मुँह से न कभी उफ़ कहते है
संकट का चरण न गहते है ,
जो आ पड़ता सब सहते है
उद्योग-निरत नित रहते है ,
शूलों का मूल नसाते है
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते है |
है कौन विघ्न ऐसा जग में
टिक सका आदमी के मग में ,
ख़म ठोक ठेलता है जब नर
पर्वत के जाते पाँव उखड़ ,
मानव जब जोर लगाता है
पत्थर पानी बन जाता है |
गुण बड़े एक-से-एक प्रखर
है छिपे मानवों के भीतर ,
मेंहदी में जैसे लाली हो
वर्तिका बीच उजियाली हो ,
बत्ती जो नहीं जलाता है
रोशनी नहीं वह पाता है ||
- रामधारी सिंह दिनकर
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Note: This inspirational poem is not my original creation .
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