10 May 2016

रूप बड़ा या गुण ( Rup Bada Ya Gun )



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!! रूप बड़ा या गुण !!



बहुत पहले की बात है | एक बार सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने महल में चाणक्य को आमंत्रित किया | महल में महारानी भी उपस्थित थी | महामंत्री चाणक्य के आने पर उन्हें उचित आसन दिया गया |

सम्राट ने कहा – “गुरुदेव क्षमा करे | एक बात कहूँ ?”

चाणक्य ने कहा – “आप तो सम्राट है , क्षमा मांगने की क्या बात है , आप कुछ भी कह सकते है |”

विलक्षण प्रतिभा के धनी चाणक्य सुन्दर नहीं थे | सम्राट ने कहा – “अगर आप गुणवान के साथ-साथ रूपवान भी होते तो सोने पर सुहागा हो जाता |”


इस बात का उत्तर चाणक्य के जगह पर महारानी ने इस प्रकार दिया – “महाराज ! आदमी की पूजा उसके रूप से नहीं , गुण और बुद्धि से होती है |”

राजा ने प्रश्न किया कि ऐसा कोई उदाहरण है जहाँ रूप के सामने गुण की कोई अहमियत हो ?

चाणक्य ने उत्तर दिया – “आप पहले शीतल जल पी कर शांत हो ले फिर बात करेंगे | उन्होंने बारी-बारी से पानी का दो ग्लास राजा की ओर बढ़ा दिए और कहा कृपा करके बताएं कि किस ग्लास का जल आपको अच्छा लगा |”

सम्राट ने जवाब दिया दूसरे ग्लास का जल शीतल और सुस्वादु था | उसे पीकर मैं तृप्त हो गया | तभी महारानी ने कहा – “महाराज गुरुदेव की बुद्धि चातुर्य ने आपके प्रश्न का उत्तर दे दिया है |”

पहले ग्लास का जल सोने के घड़े का था जबकि दुसरे ग्लास का जल मिट्टी के घड़े का था |  सारी दुनिया जानती है कि मिट्टी का घड़ा देखने में सुन्दर नहीं होता , परंतु उसका शीतल और सुस्वादु जल पीकर मन तृप्त हो जाता है | अब आप ही बताइए रूप बड़ा या गुण | सम्राट ने गुरुदेव को प्रणाम करते हुए क्षमा मांगी और महारानी को भी पहेली सुलझाने का धन्यवाद दिया |





Moral :- तो दोस्तों , आप भी समझ गए ना कि गुण ही सबसे सुन्दर होता है | रूप तो थोड़े ही समय के लिए होता है , जो एक निश्चित समय आने पर ख़त्म हो जाता है , परन्तु गुण सदैव बना रहता है |


“अपने   जिस्म   को   मत   संवारो ,  उसे  तो  मिट्टी  में   मिल  जाना  है ,
संवारना है तो अपनी आत्मा को संवारों , क्योंकि उसे तो ईश्वर के पास जाना है |”





              समय का महत्व

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 Note :-  This inspirational Story is not my original creation .


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