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!! आदत !!
एक बार कबीरदास जी
अपने दो शिष्यों के साथ संध्या भ्रमण कर रहे थे | रास्ते में एक घर से एक महिला के
रोने की आवाज आ रही थी | कबीरदास जी उस घर के आँगन में गए तो देखा कि महिला का पति
शराब के नशे में धुत्त उसे पीट रहा है | कबीरदास जी अपने शिष्यों के साथ उसे पाकर कर
आँगन से बाहर ले गए |
कबीरदास जी ने शराबी से पूछा – “भाई तुम शराब पीना क्यों
नहीं छोड़ देते ?” “यह बुरी आदत है | तुम्हारी पीने की आदत से तुम्हारा पूरा परिवार
तबाह हो रहा है |”
शराबी ने जवाब दिया –
“मैं तो पीना छोड़ देना चाहता हूँ , परन्तु यह शराब हमें छोड़ती ही नहीं है |”
तब कबीरदास जी उसे
अपने साथ घूमने चलने का निमंत्रण दिया | वह शराबी उनकी बात मानकर उनके साथ घूमने
चल दिया | थोड़ी देर चलने के बाद एक आम का बगीचा मिला | कबीरदास जी उस बगीचे में
जाकर एक पेड़ की शाखा से चिपक गए | पंद्रह–बीस मिनट तक अलग नहीं होने पर शराबी ने
कबीरदास जी ने पैड़ की शाखा छोड़ कर चलने को कहा |
कबीरदास जी ने कहा – “भाई मैं तो
चलना चाहता हूँ , परंतू यह शाखा मुझे छोड़ ही नहीं रही है |” शराबी ने कहा – “
महाराज ! आप क्या बकवास कर रहे है , शाखा से आप चिपके है , शाखा थोड़े ही आपसे
चिपकी है ?” कबीरदास जी ने कहा – “अब तुम बताओ शराब तुम पीते हो या शराब तुम्हे
पीती है ?”
शराबी निरुत्तर हो
गया एवं शराब पीना छोड़ देने की कसम खाई |
Moral :- दोस्तों , ठीक इसी प्रकार बुरे
विचारों , बुरी आदतों को हमने ही पकड़ रखा है | अगर हम उन्हें स्वयं छोड़ना चाहे तो
दुनिया की कोई ताकत हमें रोक नहीं सकती |
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