26 December 2016

जीवन में कुछ भी व्यर्थ नहीं है (Moral Story in Hindi)



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जीवन में कुछ भी व्यर्थ नहीं है (Best story in Hindi)

 !! जीवन में कुछ भी व्यर्थ नहीं है !!


हम एक-दूसरे के सहयोग से जीवन को जीते है , पर हम अक्सर यह भूल जाते है कि हमारे जीवन में हर छोटी-से-छोटी चीजों का भी वही महत्व है , जो किसी बड़ी चीज का | चाहे वो कोई व्यक्ति हो या वास्तु , जैसे - हम एक रिक्शावाले को बेहद सामान्य या अपने कद से छोटा व्यक्ति समझते है , लेकिन सच यह है कि उसके बगैर हमारा काम भी नहीं चलता | हमें यह समझना चाहिए कि जीवन में कुछ भी व्यर्थ नहीं है | आइए इसे कहानी द्वारा समझते है -






किसी जंगल में एक साधु रहा करते थे | उनके कई शिष्य थे | एक समय ऐसा आया जब उनके तीन शिष्यों की दीक्षा पूरी हुई | उन शिष्यों में एक आम समस्या थी , इतने बड़े साधु  से दीक्षा पाने के कारण वे स्वयं को औरों से श्रेष्ठ समझने लगे थे | वे जहाँ भी जाते  , वहाँ के धनवान और प्रतिभाशाली लोग उन्हें ज्यादा महत्व देते थे |

साधु को इस बात का आभास हो गया था | जब उन तीनों के वापस जाने का समय आया तो वो साधु के पास पहुंचे और बोले - "गुरु जी ! हमारी दीक्षा समाप्त हुई , हम आपको गुरु दक्षिणा देना चाहते है | बताए हम आपको क्या दें ? उनकी बात सुनकर साधु मुस्कुराए और बोले - "ठीक है ! जाकर एक थैला सुखी पत्तियाँ ले आओ , वही मेरी गुरु दक्षिणा होगी |" यह सुनकर शिष्य बहुत खुश हुए कि काफी सस्ते में गुरु दक्षिणा से निपट जायेंगे |

जब वे जंगल की ओर गए तो उन्हें बहुत थोड़ी सुखी पत्तियाँ ही मिल पाई | उनका ठेला आधा भी नहीं भरा था  , वे आश्चर्य में पड़ गए कि इतनी सुखी पत्तियाँ कौन ले गया | तभी उनको एक किसान दिखाई दिया | किसान से उन्होंने पूछा तो उसने कहा - "मैंने तो सभी पत्तियाँ ईंधन में इस्तेमाल कर ली अब और पत्तियाँ तो नहीं है |" किसान ने उसे एक व्यापारी का पता बताया |

तीनों शिष्य व्यापारी के पास पहुँचे और सुखी पत्तियों के लिए याचना करने लगे | व्यापारी बोला - "आप देर से आये है | मैंने अभी-अभी पत्तियों की टोकरी बनाकर बेच दी |" व्यापारी ने उनको एक बुढ़िया का पता बताया |





तीनों फिर बुढ़िया के पास पहुँचे | बुढ़िया अपने बक्से में रखी दवाईयों को दिखाते हुई बोली - "अब तो मेरे पास पत्तियाँ नहीं बची क्योकि मैंने उसकी दवाईयाँ बना ली है |"  थक-हार कर तीनों शिष्य साधु के पास पहुँचे और बोले - "गुरूजी माफ़ कीजिये , हमने बहुत प्रयास किया पर सुखी पत्तियाँ नहीं मिली |"

यह सुनकर साधु मुस्कुराए और बोले - "देखा तुम लोगो ने जंगल में पड़ी सुखी पत्तियाँ भी व्यर्थ नहीं है और उनका भी कितना उपयोग है | जबकि तुम लोगो ने कई इंसानों को भी महत्वहीन समझ लिया है | मैंने तुम सब को यह अंतिम ज्ञान देने के लिए ही जंगल भेजा था |"

यह सुनकर तीनों शिष्य शर्मिन्दा हो गए | उनको अपनी गलती का अहसास हो गया | उन्होंने प्रतिज्ञा की - "कभी भी वे दो इंसानों के बीच धन और शक्ति के आधार पर भेद नहीं करेंगे |"

Moral : - समय परिवर्तनशील और किसी भी किसी भी व्यक्ति का समय एक जैसा नहीं रहता | संभव है कि जिस व्यक्ति को आज आप उचित मान नहीं दे रहे , भविष्य में वह किसी विशेष स्थान को प्राप्त कर ले और आपको उन्हें ना चाहते हुए भी मान देना पड़े | इसलिए दोस्तों हमें सभी को बराबर मान देना चाहिए | कभी भी किसी को छोटा नहीं समझना चाहिए | यदि हम ऐसा कर पाते है तो हमारी विश्वश्नियता कायम रहेगी और हमारे शुभचिंतकों की संख्या में निरंतर इजाफा होता रहेगा |






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 Note:    This inspirational Story is not my original creation .


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