25 October 2016

मानव-जीवन (Hindi Poem on Life)



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मानव-जीवन (Hindi Poem on Life)

!! मानव-जीवन !!


प्रातः    मैंने    दोपाये   को ,
चार पैरों  पर  चलते  देखा |
दिन  उगने  पर  पुनः  उसे ,
दो   पैरों   से   बढ़ते   देखा |


साँझ ढली तो  मैंने  उसको ,
तीन   पैरों  पर  खड़े   देखा |
दुनिया वालों अजब तमाशा ,
इस जीवन  का  मैंने  देखा |


जब  क्षीण  हुई   शक्ति  तो ,
चारपाई   पर   सोये   देखा |
 जब जग छोड़ चला  वह तो ,
चार  कंधों  पर  जाते  देखा |


 दुनिया वालों अजब तमाशा ,
इस  जीवन  का  मैंने  देखा |







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Note :-    This inspirational poem is not my original creation .


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