आँधी मिले तूफान मिले ,
चाहे जितने व्यवधान मिले ,
बढ़ना ही अपना काम
है ,
बढ़ना ही अपना काम है |
बढ़ना ही अपना काम है |
हम नई चेतना की धारा
,
हम अंधियारे में उजियारा ,
हम उस ब्यार के
झोंके हैं ,
जो हरले सब का दुःख सारा |
बढ़ना है शूल मिले तो क्या ?
पथ में अंगार जले तो क्या ?
जीवन में कहाँ विराम
है ?
बढ़ना ही अपना काम
है |
हम अनुयायी उन पाँवों
के ,
आदर्श लिए जो खड़े
रहे
,
बाधाएँ जिन्हे डिगा
न सकी ,
जो संघर्ष पर अड़े रहे |
सिर पर मंडराता काल रहे
,
करवट लेता भूचाल रहे ,
पर अमिट हमारा नाम है ,
बढ़ना ही अपना काम
है |
वह देखो पास खड़ी मंजिल ,
इंगित कर हमें बुलाती है ,
साहस से बढ़ने वालों के ,
माथे पर तिलक लगाती है ,
साधना न व्यर्थ कभी जाती ,
चलकर ही मंजिल मिल पाती ,
फिर क्या बादल क्या घाम है ,
बढ़ना ही अपना काम है |
बढ़ना ही अपना काम है ||
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Note :- This inspirational poem is not my original creation .
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Very nice and impressive lines.....badte raho aur safalta pate raho.....
ReplyDeleteThanks......
Deletenice
ReplyDeleteThanks
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